Friday, November 6, 2009
Friday, August 14, 2009
आरती
जय जय भादवा माता , ओ भादवा माता |
दूर दूर रा भगत जी , आ नाचता गाता ||
जय जय ..........................................
आवे आको मालवो आवे हे मेवाड़ |
महिमा अतरी बड़ी , पूगी मारवाड़ ||
जय जय ..........................................
आन्दा ने आंख्या मेले , लंगडा ने पगल्या |
बाझां ने बेटा मेले , बालका ने चटका ||
जय जय ..........................................
नावों - धोवो बावडी , उतरो भागता रेते |
भारी भारी लकवा , पल भर में मेटे ||
जय जय ..........................................
आवे आको मालवो आवे हे मेवाड़ |
महिमा अतरी बड़ी , पूगी मारवाड़ ||
जय जय ..........................................
आन्दा ने आंख्या मेले , लंगडा ने पगल्या |
बाझां ने बेटा मेले , बालका ने चटका ||
जय जय ..........................................
नारेल मिश्री माला , चूरमो बाटी दाल|
पाँच वास जो - जो करे , करे भादवा न्याल ||
जय जय ..........................................
वाणी री अरजी माँ , हुणों ध्यान लगाय |
तान- मन पूजे भादवा , वे हगारा फल पाय ||
जय जय ..........................................
कवि ' अमृत वाणी '
Saturday, August 8, 2009
माँ भादवा की मोहक प्रतिमा
माँ अर्थात शक्ति का स्वरूप, जो अपने अलग-अलग रूपों में प्रकट होकर भक्तों के दुख दूर करती है फिर चाहे वह त्रिकुट पर्वत पर विराजीत माँ वैष्णवी हो, पावागढ़ वाली माता हो या फिर महामाया भादवा माता ही क्यों न हो। माता का हर रूप चमत्कारी व मनोहारी है, जिसके दर्शन मात्र से ही मन प्रसन्न हो जाता है तथा माता की भक्ति में रम जाता है। हमारे देश में कई प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जहाँ माता चमत्कारी मूर्ति के रूप में विराजमान हैं। माता की एक ऐसी ही चमत्कारी मूर्ति है 'भादवा माता धाम' में। मध्यप्रदेश के नीमच से लगभग 18 किमी की दूरी पर स्थित माँ भादवा का मंदिर एक विश्वविख्यात धार्मिक स्थल है। जहाँ दूर-दूर से लकवा, नेत्रहीनता, कोढ़ आदि रोगों से ग्रसित रोगी आते हैं व निरोगी होकर जाते हैं। Gayarti Sharma WD माँ भादवा की मोहक प्रतिमा :- भादवा माता के मंदिर में सुंदर चाँदी के सिंहासन पर विराजित हैं माँ की चमत्कारी मूर्ति। इस मूर्ति के नीचे माँ नवदुर्गा के नौ रूप विराजित हैं। कहते हैं मूर्ति भी चमत्कारी है व उससे ज्यादा चमत्कारी वो ज्योत है, जो कई सालों से अखंडित रूप से जलती जा रही है। यह ज्योत कभी नहीं बुझी और माँ के चमत्कार भी कभी नहीं रूके। आज भी यह ज्योत माँ की प्रतिमा के समीप ही प्रज्ज्वलित हो रही है। यहाँ होते हैं चमत्कार :- माता के इस मंदिर में आपको साक्षात चमत्कार देखने को मिलेंगे। देश के अलग-अलग इलाकों से यहाँ लकवाग्रस्त व नेत्रहीन रोगी आते हैं, जो माँ के मंदिर के सामने ही रात्रि विश्राम करते हैं। बारह महीने यहाँ भक्तों का जमावड़ा रहता है। मंदिर परिसर में आपको इधर-उधर डेरा डाले कई लकवा रोगी देखने को मिल जाएँगे, जो निरोगी होने की उम्मीद से कई मीलों का सफर तय करके भादवा धाम आए हैं। कहा जाता है कि रोज रात को माता मंदिर में फेरा लगाती हैं तथा अपने भक्तों को आशीष देकर उन्हें निरोगी करती हैं। कई लोग यहाँ आए तो दूसरों के कंधों के सहारे परंतु गए बिना किसी सहारे के अपने पैरों पर। जब से मंदिर है तब से यहाँ प्राचीन बावड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि माता ने अपने भक्तों को निरोगी बनाने के लिए जमीन से यह जल निकाला था और कहा था कि मेरी इस बावड़ी के जल से जो भी स्नान करेगा, वह व्यक्ति रोगमुक्त हो जाएगा। मंदिर परिसर में स्थित बावड़ी का जल अमृत तुल्य है। माता की इस बावड़ी के चमत्कारी जल से स्नान करने पर समस्त शारीरिक व्याधियाँ दूर होती हैं। Gayarti Sharma WD मुर्गे और बकरे करते है माँ का गुणगान :- अपनी मुराद पूरी होने पर इस मंदिर में जिंदा मुर्गे व बकरे छोड़कर जाने का भी चलन है। इसके अलावा यहाँ चाँदी व सोने की आँख, हाथ आदि भी माता को चढ़ाए जाते हैं। यह सब निर्भर करता है आपकी ली गई मन्नत पर। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब भादवा माँ की आरती होती है तब ये मुर्गा, कुत्ता, बकरी आदि सभी जानवर तल्लीनता से माँ की आरती में शामिल होते हैं। आरती के समय आपको मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ में कई मुर्गे व बकरी घूमते हुए दिख जाएँगे। नवरात्रि पर मचती है धूम :- प्रतिवर्ष चैत्र और कार्तिक माह में नवरात्रि पर भादवा माता मंदिर परिक्षेत्र में विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें शामिल होने दूर-दूर से भक्त आते हैं। कुछ भक्त अपने पदवेश त्यागकर नंगे पैर माँ के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। नवरात्रि पर विशेष रूप से माँ भादवा के धाम तक की कई बसे चलती हैं। माँ कभी अपने भक्तों में भेदभाव नहीं करती। इसका उदाहरण माँ भादवा का मंदिर है। यहाँ अमीर हो या गरीब, मानव हो या पशु सभी मंदिर परिसर में माँ की मूर्ति के समक्ष रात्रि विश्राम करते हैं तथा सच्चे मन से एक साथ माँ का गुणगान करते हैं। माँ भादवा हमेशा अपने भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें तथा हमारे मन मंदिर में आस्था का केंद्र बनकर विराजित रहें। यही कामना
Tuesday, July 21, 2009
Monday, June 22, 2009
भादवा देवी का चमत्कारी कुंड
भादवा देवी का चमत्कारी कुंड
मध्य प्रदेश के नीमच जिले में स्थित है मां भदवा देवी का मंदिर. कहा जाता है कि मां भादवा देवी के दर्शन और उनके मंदिर के पास स्थित कुंड में स्नान करने से तमाम तरह के रोग दूर हो जाते हैं.पार्ट १
http://aajtak.intoday.in/index.php?option=com_magazine&opt=section§ionid=1&secid=2&Itemid=1&videoid=13090&play_video=0
पार्ट २
http://aajtak.intoday.in/index.php?option=com_magazine&opt=section§ionid=1&secid=2&Itemid=1&videoid=13090&play_video=१
आज तक
२९ may
श्रावण भादवा
श्रावण भादवा धरा आली फुलारून
धरा आली फुलारून साज हिरवा लेवून
बरसती धारा धारा चुकून माकून
चुकून माकून मेघ गेले विस्कटून
भारावली केळ देह सुगंधात न्हाला
सुगंधात न्हाला रावा मनात हसला
ऊन पावसाचा खेळ अस्मानी रंगला
अस्मानी रंगला झाला आनंद मातीला
वारा धरी फेर वनी नाचे धुंद मोर
नाचे धुंद मोर निळ्या पिसांचा शृंगार
प्राजक्त फुलांचा सडा अंगणी पडला
अंगणी पडला झुला झुलत राहिला
श्रावण भादवा आला मनी बहरून
मनी बहरून नव्या आशा पालवून
श्रावण भादवा मना देई अलिंगन
देई अलिंगन जसा स्वप्नात साजण
Wednesday, May 13, 2009
Wednesday, May 6, 2009
नहाने से दूर होता है लकवा!
नहाने से दूर होता है लकवा
रहस्य और रोमांच के इस दौर में हमारा अगला पड़ाव क्या होगा? कहाँ जाएँ हम। आपके सामने क्या नया लाएँ। हम इसी उधेड़बुन में उलझे थे कि हमारी टीम में से एक व्यक्ति ने कहा - भादवा माता जाना चाहिए। सुना है वहाँ नहाने से लकवाग्रस्त मरीज बिलकुल ठीक हो जाते हैं।
यह सुनते ही हमने निश्चय कर लिया भादवा माता जाने का। मध्यप्रदेश के नीमच शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद हम पहुँचे भादवा माता मंदिर। मंदिर के दोनों तरफ पूजा-अर्चना के सामानों से दुकानें सजी थीं। थोड़ा अंदर जाने पर हमें पानी की एक बड़ी टंकी दिखाई दी। हम कुछ और आगे बढ़े और मंदिर परिसर में पहुँच गए। वहाँ हमारी मुलाकात हुई मंदिर प्रबंधक विश्वनाथ गहलोत से।
विश्वनाथजी से बातचीत में पता चला कि यह भीलों की कुलदेवी भादवा माता का मंदिर है। यहाँ का पुजारी ब्राह्मण न होकर भील जाति का व्यक्ति ही होता है। हमने जब इनसे पैरालिसिस ठीक हो जाने की मान्यता के बारे में पूछा तो उनका कहना था 'जी हाँ, यहाँ चमत्कार होते हैं। यह मंदिर और यहाँ की बावड़ी काफी प्राचीन हैं। यहाँ की बावड़ी के पानी में नहाने के बाद पैरालिसिस के मरीजों को खासी राहत मिलती है'।
बात को आगे बढ़ाते हुए गहलोत जी ने बताया कि नवरात्र के मेले के समय यहाँ खासी भीड़ रहती है। पहले यहाँ काफी अव्यवस्था फैल जाती थी, जिसको देखते हुए प्रशासन ने पानी की टंकी बनवाई है। पिछले बीस सालों से बावड़ी में नहाना बंद करवा दिया है। बावड़ी के पानी से टंकी भरती है। यहीं पर महिलाओं और पुरुषों के लिए दो अलग-अलग स्नानागार बनवाए गए हैं। अब रोगी हो या आम इनसान, स्नान यहीं किया जाता है।
अब हमें रास्ते में दिखी बड़ी टंकी का रहस्य समझ में आया। मंदिर और बावड़ी को देखने के बाद हमने रुख किया पानी की टंकी के पास बने स्नानागारों की ओर। पानी की टंकी के पास काफी भीड़ थी। हमने वहाँ स्नान कर रहे रोगियों से बातचीत की।
भादवा माता के जल से स्नान के बाद लकवा ठीक हो सकता है?
इन्हीं में से एक थे, रतलाम के अंबारामजी। अंबारामजी यहाँ दूसरी बार आए थे। अंबारामजी ने हमें बताया कि मुझे तीन साल पहले लकवा मार गया था। पैर तो हिलते ही नहीं थे। यहाँ तक आने के लिए लोग उठाकर लाते थे। यहाँ नौ दिन रहने के बाद पैरों की जकड़न कुछ कम हुई। मैं तीन साल बाद अपने पैरों पर चलने लगा। फिर घर लौट गया। अब दूसरी बार फिर यहाँ आया हूँ। इस बार विश्वास है कि शनिवार-रविवार तक पूरी तरह ठीक हो जाऊँगा।
ठीक होने का दावा करने वाले अंबारामजी अकेले नहीं हैं। राजस्थान से यहाँ आए अशोक के परिवार वाले भी ऐसा ही दावा करते हैं। अशोक पाँच दिन पहले यहाँ आया था। उसके शरीर का दायाँ हिस्सा पूरी तरह से लकवे की चपेट में था। यहाँ आने के बाद उसका हाथ उठने लगा। वह लकड़ी का सहारा लेकर चलने लगा। उसकी स्थिति में सुधार देखकर उसके परिवार के लोग काफी खुश थे।
इनके अलावा यहाँ स्नान कर रहीं देवबाई, रामलाल, चिंतामण, रमेश आदि सभी का दावा था कि उनकी स्थति में कुछ सुधार हुआ है। यहीं दुकान चलाने वाले राधेश्याम शर्मा का कहना है कि कुछ साल पहले यहाँ वैज्ञानिकों ने कुछ जाँच की थी, जिसके बाद बताया गया कि यहाँ के पानी में कुछ ऐसे रासायनिक तत्व हैं जिसके कारण नसों में खून का बहाव तेज हो जाता है। शायद लोगों के ठीक होने की यही वजह होगी।
हम लकवा रोगियों से बातचीत कर रहे थे, तभी पता चला कि यहाँ के पुजारी आ चुके हैं। यह सुनते ही हम पहुँच गए माँ के द्वार। राधेश्याम भील नामक पुजारी पिछले कई सालों से यहाँ की देखभाल कर रहे हैं। उनका कहना है, यहाँ की मान्यता है कि शनिवार और रविवार की रात में देवीजी अपनी सवारी के साथ मंदिर की परिक्रमा करती हैं और यहाँ सो रहे रोगियों के रोग हर लेती हैं।
इस मान्यता के कारण यहाँ आने वाले यात्री रात मंदिर के परिसर में ही गुजारते हैं। इसी के साथ-साथ यहाँ जिंदा बकरा-मुर्गा चढ़ाने की मान्यता भी है, जिसके कारण मंदिर परिसर में मुर्गे और बकरे घूमते नजर आते हैं। इसके चलते परिसर में गंदगी हो जाती है। यहाँ मुर्गों के जरिए टोटका करने की मान्यता भी काफी प्रचलित है।
भादवा माता के जल से स्नान के बाद लकवा ठीक हो सकता है?
यहाँ सुबह-शाम होने वाली आरती का भी काफी महत्व है। आरती के समय यहाँ आए रोगी चाहे वह कितने भी लाचार क्यों न हों, देवी के सम्मुख जरूर आते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यदि माँ प्रसन्न हो जाए तो रोगी घंटा बजाते हुए या मंदिर की परिक्रमा लगाते हुए ठीक हो जाता है।
यह तो मान्यताएँ हैं, लेकिन यहाँ के पानी की तासीर कुछ अलग है। अभी इसकी पूरी वैज्ञानिक जाँच होनी बाकी है, क्योंकि यहाँ की बावड़ी ही नहीं, बल्कि आसपास के कुओं के पानी में भी कुछ खास है। गर्मियों में जब बावड़ी का पानी सूख जाता है, तब आसपास के कुओं से बावड़ी में पानी डाला जाता है। इस पानी का भी रोगियों पर सकारात्मक असर होता है।
इससे पता चलता है कि यहाँ के पानी में ही कुछ खास है। हमने अपनी खोजबीन में महसूस किया कि यहाँ आने वाले कई लोग दावा कर रहे थे कि यहाँ आने के बाद उनका लकवा ठीक हुआ है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ता है। यहाँ के लोगों का कहना है, हम सभी माँ की औलाद हैं। यदि हम उन पर जननी की तरह विश्वास रखकर तकलीफ दूर करने की विनती करेंगे तो वे हमारी मुराद जरूर पूरी करेंगी। अब आप इसे आस्था कहें या अंधविश्वास, लेकिन यह सच है कि यहाँ स्नान करने वाले कई लकवा रोगी ठीक हो जाने का दावा करते हैं।
कब से शुरू है सिलसिला - भादव माता का मंदिर 800 साल पुराना माना जाता है। यहाँ की मूर्तियाँ भी काफी प्राचीन हैं। पहले-पहल यहाँ लोग दर्शन से पहले बावड़ी के पानी में स्नान करते थे। फिर कुछ लोगों को महसूस हुआ कि यहाँ के पानी से स्नान करने के बाद लकवे के मरीज को फायदा होता है। धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी। रोगियों की भीड़ मंदिर में लगने लगी। तब शासन की पहल से यहाँ पानी की टंकी का निर्माण हुआ। साल में दोनों नवरात्रों पर यहाँ मेला लगता है।
रहस्य और रोमांच के इस दौर में हमारा अगला पड़ाव क्या होगा? कहाँ जाएँ हम। आपके सामने क्या नया लाएँ। हम इसी उधेड़बुन में उलझे थे कि हमारी टीम में से एक व्यक्ति ने कहा - भादवा माता जाना चाहिए। सुना है वहाँ नहाने से लकवाग्रस्त मरीज बिलकुल ठीक हो जाते हैं।
यह सुनते ही हमने निश्चय कर लिया भादवा माता जाने का। मध्यप्रदेश के नीमच शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद हम पहुँचे भादवा माता मंदिर। मंदिर के दोनों तरफ पूजा-अर्चना के सामानों से दुकानें सजी थीं। थोड़ा अंदर जाने पर हमें पानी की एक बड़ी टंकी दिखाई दी। हम कुछ और आगे बढ़े और मंदिर परिसर में पहुँच गए। वहाँ हमारी मुलाकात हुई मंदिर प्रबंधक विश्वनाथ गहलोत से।
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बात को आगे बढ़ाते हुए गहलोत जी ने बताया कि नवरात्र के मेले के समय यहाँ खासी भीड़ रहती है। पहले यहाँ काफी अव्यवस्था फैल जाती थी, जिसको देखते हुए प्रशासन ने पानी की टंकी बनवाई है। पिछले बीस सालों से बावड़ी में नहाना बंद करवा दिया है। बावड़ी के पानी से टंकी भरती है। यहीं पर महिलाओं और पुरुषों के लिए दो अलग-अलग स्नानागार बनवाए गए हैं। अब रोगी हो या आम इनसान, स्नान यहीं किया जाता है।
अब हमें रास्ते में दिखी बड़ी टंकी का रहस्य समझ में आया। मंदिर और बावड़ी को देखने के बाद हमने रुख किया पानी की टंकी के पास बने स्नानागारों की ओर। पानी की टंकी के पास काफी भीड़ थी। हमने वहाँ स्नान कर रहे रोगियों से बातचीत की।
भादवा माता के जल से स्नान के बाद लकवा ठीक हो सकता है?
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ठीक होने का दावा करने वाले अंबारामजी अकेले नहीं हैं। राजस्थान से यहाँ आए अशोक के परिवार वाले भी ऐसा ही दावा करते हैं। अशोक पाँच दिन पहले यहाँ आया था। उसके शरीर का दायाँ हिस्सा पूरी तरह से लकवे की चपेट में था। यहाँ आने के बाद उसका हाथ उठने लगा। वह लकड़ी का सहारा लेकर चलने लगा। उसकी स्थिति में सुधार देखकर उसके परिवार के लोग काफी खुश थे।
इनके अलावा यहाँ स्नान कर रहीं देवबाई, रामलाल, चिंतामण, रमेश आदि सभी का दावा था कि उनकी स्थति में कुछ सुधार हुआ है। यहीं दुकान चलाने वाले राधेश्याम शर्मा का कहना है कि कुछ साल पहले यहाँ वैज्ञानिकों ने कुछ जाँच की थी, जिसके बाद बताया गया कि यहाँ के पानी में कुछ ऐसे रासायनिक तत्व हैं जिसके कारण नसों में खून का बहाव तेज हो जाता है। शायद लोगों के ठीक होने की यही वजह होगी।
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इस मान्यता के कारण यहाँ आने वाले यात्री रात मंदिर के परिसर में ही गुजारते हैं। इसी के साथ-साथ यहाँ जिंदा बकरा-मुर्गा चढ़ाने की मान्यता भी है, जिसके कारण मंदिर परिसर में मुर्गे और बकरे घूमते नजर आते हैं। इसके चलते परिसर में गंदगी हो जाती है। यहाँ मुर्गों के जरिए टोटका करने की मान्यता भी काफी प्रचलित है।
भादवा माता के जल से स्नान के बाद लकवा ठीक हो सकता है?
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यह तो मान्यताएँ हैं, लेकिन यहाँ के पानी की तासीर कुछ अलग है। अभी इसकी पूरी वैज्ञानिक जाँच होनी बाकी है, क्योंकि यहाँ की बावड़ी ही नहीं, बल्कि आसपास के कुओं के पानी में भी कुछ खास है। गर्मियों में जब बावड़ी का पानी सूख जाता है, तब आसपास के कुओं से बावड़ी में पानी डाला जाता है। इस पानी का भी रोगियों पर सकारात्मक असर होता है।
इससे पता चलता है कि यहाँ के पानी में ही कुछ खास है। हमने अपनी खोजबीन में महसूस किया कि यहाँ आने वाले कई लोग दावा कर रहे थे कि यहाँ आने के बाद उनका लकवा ठीक हुआ है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जिन्हें खाली हाथ ही लौटना पड़ता है। यहाँ के लोगों का कहना है, हम सभी माँ की औलाद हैं। यदि हम उन पर जननी की तरह विश्वास रखकर तकलीफ दूर करने की विनती करेंगे तो वे हमारी मुराद जरूर पूरी करेंगी। अब आप इसे आस्था कहें या अंधविश्वास, लेकिन यह सच है कि यहाँ स्नान करने वाले कई लकवा रोगी ठीक हो जाने का दावा करते हैं।
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भादवा माता का चमत्कारी मंदिर
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माँ अर्थात शक्ति का स्वरूप, जो अपने अलग-अलग रूपों में प्रकट होकर भक्तों के दुख दूर करती है फिर चाहे वह त्रिकुट पर्वत पर विराजीत माँ वैष्णवी हो, पावागढ़ वाली माता हो या फिर महामाया भादवा माता ही क्यों न हो। माता का हर रूप चमत्कारी व मनोहारी है, जिसके दर्शन मात्र से ही मन प्रसन्न हो जाता है तथा माता की भक्ति में रम जाता है।
हमारे देश में कई प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जहाँ माता चमत्कारी मूर्ति के रूप में विराजमान हैं। माता की एक ऐसी ही चमत्कारी मूर्ति है 'भादवा माता धाम' में। मध्यप्रदेश के नीमच से लगभग 18 किमी की दूरी पर स्थित माँ भादवा का मंदिर एक विश्वविख्यात धार्मिक स्थल है। जहाँ दूर-दूर से लकवा, नेत्रहीनता, कोढ़ आदि रोगों से ग्रसित रोगी आते हैं व निरोगी होकर जाते हैं।
हमारे देश में कई प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जहाँ माता चमत्कारी मूर्ति के रूप में विराजमान हैं। माता की एक ऐसी ही चमत्कारी मूर्ति है 'भादवा माता धाम' में। मध्यप्रदेश के नीमच से लगभग 18 किमी की दूरी पर स्थित माँ भादवा का मंदिर एक विश्वविख्यात धार्मिक स्थल है। जहाँ दूर-दूर से लकवा, नेत्रहीनता, कोढ़ आदि रोगों से ग्रसित रोगी आते हैं व निरोगी होकर जाते हैं।
माँ भादवा की मोहक प्रतिमा :-
भादवा माता के मंदिर में सुंदर चाँदी के सिंहासन पर विराजित हैं माँ की चमत्कारी मूर्ति। इस मूर्ति के नीचे माँ नवदुर्गा के नौ रूप विराजित हैं। कहते हैं मूर्ति भी चमत्कारी है व उससे ज्यादा चमत्कारी वो ज्योत है, जो कई सालों से अखंडित रूप से जलती जा रही है। यह ज्योत कभी नहीं बुझी और माँ के चमत्कार भी कभी नहीं रूके। आज भी यह ज्योत माँ की प्रतिमा के समीप ही प्रज्ज्वलित हो रही है।
यहाँ होते हैं चमत्कार :-
माता के इस मंदिर में आपको साक्षात चमत्कार देखने को मिलेंगे। देश के अलग-अलग इलाकों से यहाँ लकवाग्रस्त व नेत्रहीन रोगी आते हैं, जो माँ के मंदिर के सामने ही रात्रि विश्राम करते हैं। बारह महीने यहाँ भक्तों का जमावड़ा रहता है। मंदिर परिसर में आपको इधर-उधर डेरा डाले कई लकवा रोगी देखने को मिल जाएँगे, जो निरोगी होने की उम्मीद से कई मीलों का सफर तय करके भादवा धाम आए हैं।
कहा जाता है कि रोज रात को माता मंदिर में फेरा लगाती हैं तथा अपने भक्तों को आशीष देकर उन्हें निरोगी करती हैं। कई लोग यहाँ आए तो दूसरों के कंधों के सहारे परंतु गए बिना किसी सहारे के अपने पैरों पर।
जब से मंदिर है तब से यहाँ प्राचीन बावड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि माता ने अपने भक्तों को निरोगी बनाने के लिए जमीन से यह जल निकाला था और कहा था कि मेरी इस बावड़ी के जल से जो भी स्नान करेगा, वह व्यक्ति रोगमुक्त हो जाएगा। मंदिर परिसर में स्थित बावड़ी का जल अमृत तुल्य है। माता की इस बावड़ी के चमत्कारी जल से स्नान करने पर समस्त शारीरिक व्याधियाँ दूर होती हैं।
भादवा माता के मंदिर में सुंदर चाँदी के सिंहासन पर विराजित हैं माँ की चमत्कारी मूर्ति। इस मूर्ति के नीचे माँ नवदुर्गा के नौ रूप विराजित हैं। कहते हैं मूर्ति भी चमत्कारी है व उससे ज्यादा चमत्कारी वो ज्योत है, जो कई सालों से अखंडित रूप से जलती जा रही है। यह ज्योत कभी नहीं बुझी और माँ के चमत्कार भी कभी नहीं रूके। आज भी यह ज्योत माँ की प्रतिमा के समीप ही प्रज्ज्वलित हो रही है।
यहाँ होते हैं चमत्कार :-
माता के इस मंदिर में आपको साक्षात चमत्कार देखने को मिलेंगे। देश के अलग-अलग इलाकों से यहाँ लकवाग्रस्त व नेत्रहीन रोगी आते हैं, जो माँ के मंदिर के सामने ही रात्रि विश्राम करते हैं। बारह महीने यहाँ भक्तों का जमावड़ा रहता है। मंदिर परिसर में आपको इधर-उधर डेरा डाले कई लकवा रोगी देखने को मिल जाएँगे, जो निरोगी होने की उम्मीद से कई मीलों का सफर तय करके भादवा धाम आए हैं।
कहा जाता है कि रोज रात को माता मंदिर में फेरा लगाती हैं तथा अपने भक्तों को आशीष देकर उन्हें निरोगी करती हैं। कई लोग यहाँ आए तो दूसरों के कंधों के सहारे परंतु गए बिना किसी सहारे के अपने पैरों पर।
जब से मंदिर है तब से यहाँ प्राचीन बावड़ी है। ऐसा कहा जाता है कि माता ने अपने भक्तों को निरोगी बनाने के लिए जमीन से यह जल निकाला था और कहा था कि मेरी इस बावड़ी के जल से जो भी स्नान करेगा, वह व्यक्ति रोगमुक्त हो जाएगा। मंदिर परिसर में स्थित बावड़ी का जल अमृत तुल्य है। माता की इस बावड़ी के चमत्कारी जल से स्नान करने पर समस्त शारीरिक व्याधियाँ दूर होती हैं।
मुर्गे और बकरे करते है माँ का गुणगान :-
अपनी मुराद पूरी होने पर इस मंदिर में जिंदा मुर्गे व बकरे छोड़कर जाने का भी चलन है। इसके अलावा यहाँ चाँदी व सोने की आँख, हाथ आदि भी माता को चढ़ाए जाते हैं। यह सब निर्भर करता है आपकी ली गई मन्नत पर।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब भादवा माँ की आरती होती है तब ये मुर्गा, कुत्ता, बकरी आदि सभी जानवर तल्लीनता से माँ की आरती में शामिल होते हैं। आरती के समय आपको मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ में कई मुर्गे व बकरी घूमते हुए दिख जाएँगे।
नवरात्रि पर मचती है धूम :-
प्रतिवर्ष चैत्र और कार्तिक माह में नवरात्रि पर भादवा माता मंदिर परिक्षेत्र में विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें शामिल होने दूर-दूर से भक्त आते हैं। कुछ भक्त अपने पदवेश त्यागकर नंगे पैर माँ के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। नवरात्रि पर विशेष रूप से माँ भादवा के धाम तक की कई बसे चलती हैं।
माँ कभी अपने भक्तों में भेदभाव नहीं करती। इसका उदाहरण माँ भादवा का मंदिर है। यहाँ अमीर हो या गरीब, मानव हो या पशु सभी मंदिर परिसर में माँ की मूर्ति के समक्ष रात्रि विश्राम करते हैं तथा सच्चे मन से एक साथ माँ का गुणगान करते हैं। माँ भादवा हमेशा अपने भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें तथा हमारे मन मंदिर में आस्था का केंद्र बनकर विराजित रहें। यही कामना है।
अपनी मुराद पूरी होने पर इस मंदिर में जिंदा मुर्गे व बकरे छोड़कर जाने का भी चलन है। इसके अलावा यहाँ चाँदी व सोने की आँख, हाथ आदि भी माता को चढ़ाए जाते हैं। यह सब निर्भर करता है आपकी ली गई मन्नत पर।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जब भादवा माँ की आरती होती है तब ये मुर्गा, कुत्ता, बकरी आदि सभी जानवर तल्लीनता से माँ की आरती में शामिल होते हैं। आरती के समय आपको मंदिर परिसर में भक्तों की भीड़ में कई मुर्गे व बकरी घूमते हुए दिख जाएँगे।
नवरात्रि पर मचती है धूम :-
प्रतिवर्ष चैत्र और कार्तिक माह में नवरात्रि पर भादवा माता मंदिर परिक्षेत्र में विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें शामिल होने दूर-दूर से भक्त आते हैं। कुछ भक्त अपने पदवेश त्यागकर नंगे पैर माँ के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। नवरात्रि पर विशेष रूप से माँ भादवा के धाम तक की कई बसे चलती हैं।
माँ कभी अपने भक्तों में भेदभाव नहीं करती। इसका उदाहरण माँ भादवा का मंदिर है। यहाँ अमीर हो या गरीब, मानव हो या पशु सभी मंदिर परिसर में माँ की मूर्ति के समक्ष रात्रि विश्राम करते हैं तथा सच्चे मन से एक साथ माँ का गुणगान करते हैं। माँ भादवा हमेशा अपने भक्तों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें तथा हमारे मन मंदिर में आस्था का केंद्र बनकर विराजित रहें। यही कामना है।
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